बही-खाता :अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएँ (Book-keeping)

बही-खाता वर्तमान समय में वाणिज्य एवं व्यवसाय के स्वरूप में बड़ी तेजी से परिवर्तन हो रहे हैं, आज व्यापार एवं वाणिज्य देश की सीमायें लांघकर सात समुन्दर पार करके के अन्तर्राष्टीय स्वरूप धारण कर चुका है।

 

किसी भी देश की प्रगति का आधार भी व्यापार और वाणिज्य ही है। इसलिए कहा भी गया है कि आधुनिक युग वाणिज्य का युग है”। विज्ञान की प्रगति के बावजूद भी वाणिज्य ही मुख्य रूप से अन्तराष्टीय सम्बन्धों का आधार बना हुआ है।

 

          प्रत्येक व्यापारी का उद्देश्य लाभ कमाना होता है। वर्ष के अन्त में वह यह जानना चाहता है कि उसने कितना लाभ कमाया है? क्या खोया है? कुल कितने का माल खरीदा है? कुल कितने का माल बेचा है? किससे कितना धन लेना है? किसको कितना धन देना है? उसकी पूँजी कितनी है? उसकी पूँजी में वृद्धि हो रही है या कमी, उसकी सम्पत्तियां कितनी है? उसके दायित्व कितने हैं? उसे कितना कर भरना है? उसके  क्या उन्नति की? इन सभी बातों की जानकारी करने के लिए बहीखाता करना आवश्यक है।

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इस सन्दर्भ  में अत्यन्त पुरानी कहावत प्रचलित है कि, पहले लिख और पीछे दे भूल परे तो कागज से ले यह कहावत बहीखाता रखने की आवश्यकता और उसके महत्व पर प्रकाश डालती है।

पुस्तपालन या बही-खाता अर्थ एवं परिभाषा

(Meaning and definition of Book-keeping)

            बही-खाता अंग्रेजी शब्द ; book-keeping का हिन्दी रूपान्तर है जो दो शब्दों ; book + keeping से मिलकर बना है, यदि इनका शाब्दिक अर्थ देखा जाय तो ;book से आशय किताब और ;keeping का आशय रखने से है । दोनों को मिलाकर देखा जाय तो बहीखाते से आशय किताबें रखना है, किन्तु व्यवहार में केवल किताबें रखने से काम नहीं चलता, उनमें व्यवहारों का लेखा करना आवश्यक है।

अतः बही-खातें का अर्थ व्यापार में होने वाले मौद्रिक व्यवहारों को नियमानुसार और सुव्यवस्थित ढ़़ग से हिसाब की पुस्तकों में लिखना है ताकि उन उद्देश्यों की प्राप्ति हो सके जिनके लिए लेखे किये जा रहे हैं ।

बही-खाते को विभिन्न विद्धानो ने अलग-अलग ढ़ग से परिभाषित किया है इनमें से कुछ विद्धानों के विचार इस प्रकार हैं:

  • श्री जे. आर. बाॅटलीवाय के अनुसार ’’ पुस्तपालन व्यापारिक व्यवहारों को लेखा पुस्तकों में लिखने की कला है।’’
  • रोलैण्ड के अनुसार ’’ पुस्तपालन सौदों को कुछ निश्चित सिद्धान्तों के आधार पर लिखना है।’’
  • श्री आर. एन. कार्टर के अनुसार ’’ बहीखाता उन समस्त व्यापारिक व्यवहारों को जिनमें मुद्रा के मूल्य का  हस्तान्तरण होता है ,लेखा पुस्तकों में सही प्रकार से लिखने की कला व विज्ञान है।’’
  • श्री डावर के अनुसार ’’ एक व्यापारी की बही खाते की पुस्तकों में क्रय विक्रय के व्यवहारों को वर्गीकृत रूप में लिखने की कला का नाम बहीखाता है।’’
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आदर्श परिभाषा- ” बही-खाता वह कला एवं विज्ञान है, जिसके द्वारा समस्त व्यापारिक मौद्रिक व्यवहारों का लेखा हिसाब की  पुस्तकों में विधिवत एवं नियमानुसार किया जाता है, ताकि उन उद्देश्यों पूर्ति हो सके जिसके लिए लेखे किये गये हैं’’

 

बहीखाता की विशेषताएँ (Features of Book-Keeping):-

1. बही-खाता एक कला एवं विज्ञान है।

2. बही-खाते के द्वारा मौद्रिक व्यापारिक व्यवहारों को हिसाब की पुस्तकों में लिखा जाता है।

3. बही-खाते के अन्तर्गत सौदों के अभिलेखन और वर्गीकरण का कार्य किया जाता है।

4. बही-खाते के लिए विशिष्ट ज्ञान और योग्यता की आवश्यकता नहीं होती है।

5. इसके अन्तर्गत मौद्रिक व्यापारिक व्यवहारों के कुछ निश्चित सिद्धान्तों के आधार पर लिखा जाता है।

6. बही-खाता  में व्यवहारों का लेखा करने के लिए निश्चित पुस्तकैं काम में लायी जाती हैं।

JK BHARDWAJ

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