आधारभूत लेखांकन शब्दावली

 आधारभूत लेखांकन शब्दावली परिचय

  • व्यवसाय (Business)-  सरल शब्दों में  व्यवसाय एक मानवाीय आर्थिक क्रिया है, जिसके अन्तर्गत वस्तुओं और सेवाओ का निर्माण, क्रय विक्रय एवं विनिमय नियमित रूप से लाभ कमाने के उद्देश्य से किया जाता है,  ताकि लोगों की आवष्यकताओं को पूरा किया जा सके। व्यवसाय वैध होना चाहिए। जैसे- वस्तुओं एवं सेवाओं का क्रय विक्रय करना, माल का निर्माण करना एवं विक्रय  आदि।                   

  • स्वामी या व्यापारी (Proprietor or Owner)- वह व्यक्ति जो व्यापार में पूँजी लगाता है, व्यापार का संचालन करता है, व्यापार से होने वाले लाभ का अधिकारी होता है तथा व्यापार में होने वाली जोखिम सहन करता है, स्वामी या व्यापारी कहलाता है ।

  • पूँजी (Capital)- अर्थशास्त्र की दृष्टि से पूँजी धन का वह भाग है, जो कि अतिरिक्त उत्पादन में लगाया जाता है। व्यापार की  दृष्टि से  व्यापार का स्वामी जो रूपया, माल, मशीन व्यापार को चलाने के लिए अपने पास से लगाता है,उसे पूँजी कहते है। जैसे- राम ने Rs.1,00,000 नकद, Rs.20,000 का माल, Rs.50,000  की मशीन से व्यापार शुरू किया तो ऐसी दशा में 1,00,000 +20,000 + 50,000 = Rs.1,70,000  पूँजी होगी। यदि ऋण लेकर व्यापार शुरू किया है तो,ऋण पूँजी नहीं कहलायेगा।

  • माल (Goods)- पुनः विक्रय के उद्देश्य से अथवा माल के निर्माण के लिए जो वस्तुएं खरीदी जाती हैं,उन्हैं माल कहा जाता है। जैसे- कपड़ा व्यापारी द्वारा खरीदा गया कपड़ा, फर्नीचर के व्यापारी द्वारा फर्नीचर बनाने के लिए खरीदी गयी लकड़ी, गल्ले के व्यापारी द्वारा खरीद गया अनाज इन व्यापारियों के लिए माल है अर्थात जो व्यापारी जिन वस्तुओं का व्यापार या कारोबार करता है, वे वस्तुएं उसके लिए माल कहलाती हैं।

  • क्रय (Purchase)- पुनः विक्रय के उद्देश्य से जो माल खरीदा जाता है,उसे क्रय कहा जाता है। जो माल नकद खरीदा जाता है,उसे नकद क्रय Cash purchase और जो माल उधार खरीदा जाता है,उसे उधार क्रय  Credit purchase कहा जाता है।

  • विक्रय (Sales)- किसी प्रतिफल के बदले में किया गया माल का हस्तान्तरण  विक्रय कहलाता है। जो माल नकद बेचा जाता है,उसे नकद विक्रय (Cash Sales) और जो माल उधार बेचा जाता है,उसे उधार विक्रय  (Credit Sales) कहा जाता है।

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  • क्रय वापसी या बाहरी वापसी (Purchase Return or Return Outward) जब खरीद हुआ माल किसी भी कारण से वापस किया जाता है,तो इसे क्रय वापसी  या बाहरी वापसी  या बाह्य वापसी भी कहा जाता है।

  • विक्रय वापसी आन्तरिक वापसी (Sales Return or Return Inward) जब बेचा हुआ माल किसी भी कारण से वापस आ जाता है,तो इसे विक्रय वापसी या आन्तरिक वापसी या भीतरी वापसी कहा जाता है।

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  • लेनदेन या सौदा या व्यवहार (Transaction)– दो व्यक्तियों या दो पक्षों के बीच होने वाले वस्तु, धन या सेवाओं के आदान प्रदान को व्यवहार या सौदा या लेनदेने कहा जाता है। सौदे तीन प्रकार के होते हैं।

  • नकद व्यवहार Cash Transactions नकद व्यवहार वे व्यवहार होते हैं, जिनमें रोकड़ का आदान प्रदान होता है। जैसे- माल नकद खरीदा या  नकद माल बेचा या वेतन नकद दिया आदि।

  • उधार व्यवहार Credit Transactions उधार व्यवहार वे व्यवहार होते हैं,जिनमें सौदा होते समय रोकड़ का आदान प्रदान नहीं होता है,वरन् भुगतान स्थगित हो जाता है अर्थात भुगतान बाद में किया जाता है।जैसे- 1,000 रू. का माल राम से उधार खरीदा।

  • वस्तु विनिमय व्यवहार Barter Transactions वस्तु विनिमय व्यवहार वे व्यवहार होते हैं, जिनमे रोकड़ का आदान प्रदान नहीं होता है, किन्तु  वस्तु के बदले वस्तु का आदान प्रदान होता है। जैसे- 2,000 रू. की मशीन खरीदी और बदले में माल दिया या मजदूरी के बदले में माल दिया आदि।

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  • प्रविष्टि (Entry) व्यापारिक लेन देनों को लेखा पुस्तकों में तिथि अनुसार सिद्धान्त अनुसार और नियमबद्ध तरीके से लिखने के कार्य को,लेखा करना या प्रविष्टि करना कहते हैं।

  • प्रमाणक (Voucher)माल के क्रय विक्रय या धन के लेनदेन को प्रमाणित करने के लिए जो प्रपत्र तैयार किये जाते हैं, उन्हैं प्रमाणक कहा जाता है। जैसे- कैश मेमो, बीजक, जमा पर्ची आदि।

  • आहरण (Drawing)- जब व्यापार का स्वामी अपने व्यापार में से कुछ रूपये या माल अपने निजी प्रयोग हेतु ले लेता है,तो इसे वाणिज्य की भाषा में आहरण कहा जाता है । आहरण करने से व्यापारी की पूँजी में कमी आ जाती है।आहरण पर ब्याज लिया जाता है यह व्यापार की आय है।

  • खाता (Account)-वह स्थान जहाँ किसी वस्तु व्यक्ति  या आय-व्यय से सम्बन्धित लेनदेनों को सामूहिक रूप से लिखा जाता है,खाता या लेखा कहलाता है।

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आधारभूत लेखांकन शब्दावली (Basic Accounting terms )

  • सम्पत्तियाँ (Assets) -वे सब वस्तुएँ जो स्थाई या अस्थाई रूप से व्यापार के संचालन में सहायक होती हैं, सम्पत्ति कहलाती हैं। जैसे- भूमि ,भवन, मशीन, फर्नीचर, मोटर गाड़ी, व्यापार चिन्ह, पेटेन्ट, फिक्चर्स,  ख्याति , काॅपीराइट ,रोकड देनदार, प्राप्यबिल, आदि। सम्पत्तियाँ निम्न प्रकार की होती हैं-

  • A. स्थायी  या गैर चालू सम्पत्तियाँ – गैर. चालू सम्पत्तियाँ  वे संपत्तियां हैं जो लंबी अवधि के लिए होती हैं और सामान्य व्यावसायिक संचालन के लिए उपयोग की जाती हैं। उदाहरण के लिए भूमि, भवन,  मशीनरी,  संयंत्र,  फर्नीचर,  ख्याति  और  मोटर वाहन आदि।
  • B. चालू सम्पत्तियाँ – चालू परिसंपत्तियां वे संपत्तियां हैं, जो कम अवधि के लिए होती हैं और एक वर्ष के भीतर नकद में परिवर्तित की जा सकती हैं। ऐसी संपत्तियों  का Balance घटता.बढ़ता रहता है।
  • उदाहरण के लिए-  देनदार,  स्टॉक,  प्राप्य बिल,  उपकरण,   स्पेयर पार्ट्स,  हाथ में नकदी,   बैंक में नकदी,  अल्पकालीन विनियोग आदि । 
  • C. तरल सम्पत्तियाँ – स्टाॅक और पूर्वदत्त व्ययों  को छोड़कर समस्त चालू सम्पत्तियाँ तरल सम्पत्तियाँ कहलाती हैं।
  • D. क्षयशील सम्पत्तियाँ खदानें, एकाधिकार, पट्टे की भूमि आदि।
  • E. बनावटी सम्पत्तियाँ प्रारम्भिक व्यय, विकास व्यय, अंशों एवं ऋणपत्रों के निर्गमन पर बट्टा आदि।
  • F. अमूर्त सम्पत्तियाँ – ख्याति, पेटेण्ट्स काॅपीराइट आदि।

  • दायित्व (Liabilities)- व्यापार की दृष्टि से देय धन को दायित्व कहा जाता है। जैसे- पूँजी, लेनदार, देय बिल, बैंक ऋण, बैंक अधिविकर्ष अदत्त व्यय आदि इस प्रकार की रकम दायित्व कही जाती है। दायित्व निम्न प्रकार के होते हैं-
  • A. स्थायी दायित्व या गैर चालू दायित्व- अंष पूँजी, दीर्घकाॅलीन ऋण ऋणपत्र  आदि।

  • B. चालू दायित्व- लेनदार, देयबिल,  बैंक अधिविकर्ष,  अदत्त व्यय, अल्पकाॅलीन ऋण आदि।
  • C. तरल दायित्व – बैंक अधिविकर्ष को छोड़कर समस्त चालू दायित्व तरल दायित्व कहलाते हैं।
  •  D. संदिग्ध दायित्व– ऐसे दायित्व जिनका होना या न होना किसी घटना के घटित होने पर निर्भर करता है, जैसे अभियोग योग्य दावे, भुनाये गये बिलों का दायित्व आदि।

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  • बट्टा या छूट या कटौती (Discount) विक्रेता द्वारा अपने ग्राहक माल के मूल्य में जो रियायत दी जाती है उसे छूट या बट्टा या कटौती कहा जाता है। छूट मुख्य रूप से दो प्रकार की होती है-

  • 1. व्यापारिक छूट                                        
  • 2. नकद छूट                                        
  • 3. विशेष छूट

  • व्यापारिक बट्टा (Trade Discount) ग्राहकों को अधिक माल खरीदने के लिए प्रेरित करने के उद्देश्य से सूची मूल्य में जो कमी की जाती है,उसे व्यापारिक बट्टा कहते हैं। यह बट्टा नकद व उधार दोनों प्रकार के सौंदों पर दिया जाता है,इसका लेखा पुस्तकों में नहीं किया जाता है इसे सीधे बीजक मंे घटाकर दिखाया जाता है।

  • नकद बट्टा (Cash Discount)-  ग्राहकों को शीघ्र भुगतान करने के उद्देश्य से जो बट्टा दिया जाता है उसे नकद बट्टा कहते हैं, यह बट्टा केवल नकद सौंदों पर ही दिया जाता है। यह बट्टा भुगतान की गयी राशि पर दिया जाता है। इसका लेखा पुस्तकों में किया जाता है।

  • ऋणी या देनदार या अधमर्ण (Debtors)  वह व्यक्ति जिसे उधार माल बेचा गया है अर्थात जिससे व्यापारी को कुछ लेना है, व्यापारी का देनदार कहलाता है।

  • ऋणदाता या लेनदार या उत्तमर्ण (Creditors)-  वह व्यक्ति जिससे उधार माल खरीदा गया है या जिसे व्यापारी को कुछ देना है, लेनदार कहलाता है।

  • डूबत ऋण (Bad debts)- उधार बेचे गये माल का जो रूपया वसूल नहीं हो पाता है या डूब जाता है, उसे डूबत ऋण या अशोध्य ऋण कहा जाता है। यह एक प्रकार से व्यापार की हानि होती है।

  • रहतिया या स्कन्ध या स्टाॅक  (Stock) साधारणतया  निश्चित अवधि के पश्चात् या वर्ष के अन्त में जो माल बिना बिका रह जाता है,उसे रहतिया कहते हैं । वर्ष के अन्त में ऐसे बचे माल को अंतिम रहतिया और अगले वर्ष के प्रारम्भ मे प्रारम्भिक रहतिया कहते है। स्टाॅक का मूल्यांकन बाजार मूल्य और लागत मूल्य दोनांे में जो कम हो उस मूल्य पर किया जाता है। रहतिया निम्न प्रकार के होते हैं-

  • 1. कच्चे माल का रहतिया                
  • 2. चालू कार्य का रहतिया                  
  • 3. निर्मित माल का रहतिया             
  • 4. स्टोर्स का रहतिया                
  • 5. जीवित रहतिया(जानवर आदि) 
  • 6. मृत रहतिया

आधारभूत लेखांकन शब्दावली (Basic Accounting terms )

  • ब्यौरा  (Narration)- प्रत्येक सौदे की जर्नल में प्रविष्टि करने के बाद उस प्रविष्टि के नीचे उस सौदे का संक्षिप्त विवरण लिखा जाता है, जिसे ब्यौरा कहते हैं। ब्यौरा देखकर सौदे की प्रकृति का ज्ञान हो जाता है।

  • डेबिट(Debit)- डेबिट का अर्थ स्वामियों के प्रति दायित्व में कमी से होता है। सम्पत्ति, खर्चोंं एवं हानि में वृद्धि और दायित्व, पूँजी व आगम में कमी से स्वामी के दायित्व में कमी होती है,इसलिए इन्हैं डेबिट करते हैं।

  • क्रेडिट (Credit) क्रेडिट का अर्थ स्वामियों के प्रति दायित्व में वृद्धि से होता है। सम्पत्ति,खर्चों एवं हानि में कमी और दायित्व पूँजी व आगम में वृद्धि स्वामियों की देयता में वृद्धि करती है, अतः क्रेडिट करते हैं। 
  • अतः यह कहा जा सकता है कि, डेबिट का अर्थ स्वामियों के प्रति दायित्व में कमी और क्रेडिट का अर्थ स्वामियों के प्रति दायित्व में वृद्धि है।

  • मुद्रा (Money)- ‘‘मुद्रा एक ऐसी वस्तु है जो विनिमय के माध्यम, मूल्य के मापक तथा मूल्यों के संचय के साधन के रूप में स्वतंत्र तथा सामान्य रूप से लोगों द्वारा स्वीकार की जाती है।’

  • लाभ (Profit)-बेचे गये माल की लागत पर विक्रय मूल्य के आधिक्य को लाभ कहा जाता है या आगम के व्यय पर आधिक्य को लाभ कहते हैं।

  • हानियाँ (Losses)- हानियाँ व्यवसाय पर अनचाहा बोझ होती हैं जिन्हैं व्यवसाय द्वारा सहन किया जाता है। हानियाँ व्यय से भिन्न होती हैं क्यों कि व्यय सोच-समझकर अपनी इच्छा से किये जाते हैं,जबकि हानियाँ सहन करनी  पड़ती हैं।

  • आय (Income)-जब व्यापारिक लेनदेनों के फलस्वरूप व्यवसाय के स्वामियों की देयता में वृद्धि होती है,तो उसे आय कहते हैं। आय माल की बिक्री से भी हो सकती है और सेवाओं की बिक्री से भी हो सकती है। आय एक व्यापक शब्द है जिसमें लाभ को भी शमिल किया जाता है।

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  • लेखांकन समीकरण (Accounting Equation)- लेखांकन समीकरण ,लेखांकन की द्वि-पक्षीय अवधारणा पर आधारित है। लेखांकन समीकरण तीन मदों अर्थात सम्पत्ति, दायित्व एवं पूँजी पर आधारित है, इन तीनों मदों के बीच के वास्तविक सम्बन्ध को लेखांकन समीकरण कहते हैं। लेखांकन समीकरण निम्न प्रकार है-

      सम्पत्तियाँ  = पूँजी + दायित्व

      Assts= Capital+Liabilities

  

JK BHARDWAJ