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मूल्य ह्रास से आशय
ह्रास- (Depriciation) -व्यवसाय में अनेक प्रकार की सम्पत्तियां प्रयोग में लायी जाती हैं, उनमें से कुछ स्थायी स्वभाव की होती हैं जैसे – भवन, मशीन, फर्नीचर, प्लांट, टाईपराईटर, कम्प्यूटर आदि। इन सम्पत्तिओं का प्रयोग व्यवसाय में निरन्तर कई वर्षों तक होता रहता है। स्थायी सम्पत्तियों के निरन्तर उपयोग में आने के कारण, टूट-फूट होने के कारण, घिसावट होने के कारण ,अप्रचलन होने के कारण, मूल पदार्थ के समाप्त होने के कारण, बाजार मूल्य स्थायी रूप से गिरने के कारण, इन स्थायी सम्पत्तियों के मूल्यों में धीरे – धीरे और स्थायी रूप से होने वाली कमी को मूल्य ह्रास कहते हैं। इसे घटौती, घसारा, अवयक्षण भी कहा जाता है।
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ह्रास-(Depriciation) के उत्पन्न होने के कारण
1.निरन्तर प्रयोग में आने के कारण
2.टूट-फूट होने के कारण
3.अप्रचलन होने के कारण
4.मूल पदार्थ समाप्त हो जाने के कारण
5.बाजार मूल्य स्थाई रूप से गिर जाने के कारण
6.घिसावट होने के कारण
ह्रास के आयोजन के उद्देश्य
1.शुद्ध लाभ हानि ज्ञात करने के लिये
2.पूंजी की कमी रोकने के लिये
3.चिट्ठे में सम्पत्तियों को सही मूल्य पर दर्शाने के लिये
4.नई सम्पत्ति की प्रतिस्थापन में सुविधा
5.आयकर में छूट प्राप्त करने के लिये
6. उत्पादन की सही लागत का पता लगाने के लिए
7. कानूनी आवश्यकताओं को पूरा करने के लिए
बही-खाता :अर्थ, परिभाषा एवं विशेषताएँ (Book-keeping)
ह्रास की गणना करते समय ध्यान रखने योग्य बातें –
1.सम्पत्ति का लागत मूल्य –लागत मूल्य से आशय केवल सम्पत्ति के क्रय मूल्य से ही नहीं होता वरन इसमें सम्पत्ति को लाने और स्थापित करने के व्यय भी शामिल किये जाते हैं।
जैसे – एक मशीन रू. 50,000 में खरीदी उसे लाने में रू.5,000 तथा स्थापित करने में रू.10,000 व्यय हुए अतः यहां पर मशीन की लागत 65,000 रू0 होगी।
2.सम्पत्ति का अनुमानित जीवन काल- एक सम्पत्ति के जितने समय चलने की सम्भावना होती है उसे उस सम्पत्ति का अनुमानित जीवन काल कहा जाता हैं।
3.अवशेष मूल्य या अवशिष्ट मूल्य –एक सम्पत्ति या मशीन के एक निश्चित अवधि के पश्चात जिस मूल्य पर बिकने की सम्भावना होती है उसे उस सम्पत्ति का अवशेष मूल्य कहा जाता है।