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भारतीय बहीखाता प्रणाली या महाजनी बहीखाता पद्धति
Or
भारतीय बहीखाता प्रणाली क्या है ?
( Indian System Of Bookkeeping)
भारतीय पद्धति से हिसाब-किताब रखने की प्रणाली को भारतीय बहीखाता प्रणाली या महाजनी बहीखाता पद्धति कहते हैं।
यह भारत में अत्यन्त प्राचीनकाल से प्रचलित पद्धति है। भारतीय बहीखाता प्रणाली लेखांकन करने की ऐसी विधि है जो भारत में लेखा कार्य करने के लिए प्रयोग में लायी जाती है।
भारतीय भाषा से भारतीय पद्धति से व्यापारिक व्यवहारों का हिसाब किताब रखने की प्रणाली को भारतीय बहीखाता प्रणाली कहते हैं। इसे महाजनी खाता प्रणाली भी कहा जाता है।
भारतीय बहीखाता प्रणाली में भारतीय परम्पराआंे और निश्चित सिद्धान्तों के (दोहरा लेखा प्रणाली) आधार पर कुछ निश्चित लेखा पुस्तकों में किसी भी भारतीय भाषा में लेखे किए जाते हैं । जिन पुस्तकों में लेखा किया जाता है ,उन्हैं बहियाँ कहते हैं।
यह प्रणाली पूर्णतया वैज्ञानिक और दोहरा लेखा प्रणाली के सिद्धान्तों पर पर आधारित है। यह प्रणाली भारत में अत्यन्त लोकप्रिय है।
व्यापार के विश्वव्यापीकरण के बाद भी प्रायः छोटे – बड़े सभी व्यापारियों द्वारा यह प्रणाली अपनायी जाती है। कौटिल्य के अर्थशास्त्र और मनु स्मृति नामक ग्रन्थों में इस प्रणाली का उल्लेख मिलता है।
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भारतीय बहीखाता प्रणाली की लोकप्रियता के कारण (Reasons for popularity of Indian System of Book-Keeping)
1. सरलता:- यह प्रणाली अत्यन्त ही सरल है कम पढ़ा लिखा व्यक्ति भी इस प्रणाली में असानी से लेखे कर सकता है
2. मितव्ययी या कम खर्चीली:- यह प्रणाली सस्ती प्रणाली है क्यों कि इस प्रणाली में कम बहियों का प्रयोग किया जाता है तथा लेखाकार भी कम वेतन पर मिल जाते हैं।
3. देशी भाषा का प्रयोगः-यह प्रणाली इस कारण भी लोकप्रिय है कि इसमें सौदों का लेखा देशी भाषाओं में किया जाता है।
4. गोपनीयताः-देशी भाषा का प्रयोग होने के कारण इस प्रणाली में गोपनीयता बनी रहती है।
5. लोचपूर्ण:-यह प्रणाली लोचपूर्ण प्रणाली है। व्यापार के आकार में परिवर्तन होने पर इस प्रणाली में बहियों को आसानी से बढ़ाया और घटाया जा सकता है।
6. कम बहियों का प्रयोगः-इस प्रणाली कम बहियों का प्रयोग किया जाता है। इस कारण भी यह लोकप्रिय है।
7. वैज्ञानिकता:- यह प्रणाली पूर्णतः वैज्ञानिक प्रणाली है क्यों कि इसके सिद्धान्त अटल हैं । यह प्रणाली भी दोहरा लेखा प्रणाली के सिद्धान्तों पर आधारित है।
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भारतीय बही खाता प्रणाली की विशेषताएँ (Features of Indian System of Book-Keeping)
1. भारतीय बहीखाता प्रणाली की प्रमुख विशेषता यह है कि इसमें स्तम्भों के लिए लाइनें नहीं खींची जाती हैं। इसमें लाइनों के स्थान पर सलें डाली जाती हैं।
2. इस प्रणाली में दो पक्ष होते हैं – जमा पक्ष और नाम पक्ष। बायें हाथ के पक्ष को जमा पक्ष तथा दाएं हाथ के पक्ष को नाम पक्ष कहा जाता है।
3. जिन बहियों में 8 सलें होती हैं उनमें प्रथम चार सलें जमा पक्ष के लिए तथा दूसरी चार सलें नाम पक्ष के लिए होती हैं।
4. चार सलों में प्रथम सल सिरा तथा शेष तीन सलें पेटा कहलाती हैं। सिरे में रकम और पेटा में विवरण लिखा जाता है।
5. जिन बहियांे में 6 सलें होती हैं उनमें एक ही पक्ष होता है जमा पक्ष या नाम पक्ष।
6. रोकड़बही में 8 सलें तथा नाम नकल एवं जमा नकल बही में 6 सलें डाली जाती हैं।
7. इस प्रणाली मंे लम्बी लम्बी बहियों का प्रयोग किया जाता है। ये बहियां लाल कपड़े में सिली रहती हैं , लाल कपड़े में जल्दी कीड़े नहीं लगते हैं।
8. इसमें सर्वप्रथम अपने इष्ट देवता का नाम लिखा जाता है तथा माल हो या वस्तु हो या व्यय हो या व्यक्तियों के नाम हों सभी के साथ आदरसूचक शब्द जैसे- श्री या भाई श्री का प्रयोग किया जाता है।
9. इस प्रणाली मंे लेखे भारतीय भाषाओं में किये जाते हैं।
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भारतीय बही खाता प्रणाली के अन्तर्गत निम्नलिखित बहियां रखी जाती हैं –
1. बन्द बही या रोजनामचा
2. रोकड़ बही
3. जमा नकल बही
4. नाम नकल बही
5. खुदरा रोकड़ बही
6. क्रय वापसी बही
7. विक्रय वापसी बही
8. जाकड़ बही
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भारतीय बहीखाता प्रणाली में लेखा करने का क्रम-
1. प्रारम्भिक बहियों में लेखा
2. वर्गीकरण खाताबही
3. तलपट (शेष-परीक्षण)
4. अंतिम खाते( वर्ष के अन्त में व्यापार खाता ,लाभ-हानि खाता तथा आर्थिक चिट्ठा )
भारतीय बही खाता प्रणाली के अन्तर्गत लेखा करने केे नियम
1. व्यक्तिगत खाता – वे खाते जो किसी व्यक्ति, फर्म या संस्था से सम्बन्ध रखते हैं व्यक्तिगत खाते कहलाते हैं ।
जैसे राम का खाता, मोहन एण्ड संस का खाता, श्याम एण्ड ब्रदर्श का खाता, बैंक का खाता, स्कूल का खाता, बीमा कम्पनी का खाता पूँजी खाता, आहरण खाता आदि।
व्यक्तिगत खाते का नियम-
’’पाने वाले को व्यापार की पुस्तकों में नाम किया जाता हैे और देने वाले को जमा किया जाता है।’’
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2. वास्तविक खाता या सम्पत्ति खाता – वे खाते जो वस्तुओं ओर सम्पत्तियों से सम्बन्ध रखते हैं वास्तविक खाते या सम्पत्ति खाते कहलाते हैं।
जैसे रोकड़ खाता, माल खाता, भवन खाता, मशीन खाता, फर्नीचर खाता एवं भूमि खाता आदि।
वास्तविक खाते का नियम-
’’जो वस्तु व्यापार में आती है उसे नाम किया जाता है और जो वस्तु व्यापार से जाती है उसे जमा किया जाता है।’’
3. नाममात्र का खाता या आयव्यय खाता – वे खाते जो व्यापार के आय एवं व्ययों से सम्बन्ध रखते हैं नाममात्र के खाते या आय व्यय खाते कहलाते है।
जैसे वेतन खाता कमीशन खाता मजदूरी खाता किराया खाता विज्ञापन खाता ब्याज खाता बट्टा खाता आदि।
नाममात्र के खाते का नियम-
’’व्यय तथा हानियों को नाम किया जाता है और आय तथा लाभ को जमा किया जाता है।’’
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